जाते-आते साल में पाप से बचिए...
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31 दिसम्बर को हर साल की अंतिम रात और नए वर्ष की शुरुआत माना जाता है, भले ही फिर यह अंग्रेजी कैलेण्डर से गलत हो या सही...नए साल का उत्सव लगभग 4000 साल से भी पहले बेबीलोन में 21 मार्च को मनाया जाता था,जो वसंत के आने की तिथि भी मानी जाती थी। प्राचीन रोम में भी नव वर्षोत्सव तभी मनाया जाता था। रोम के बादशाह जूलियस सीजर ने ईसा पूर्व 45 वें वर्ष में जब जूलियन कैलेंडर की स्थापना की,तब विश्व में पहली बार 1 जनवरी को नए साल का उत्सव मनाया गया। नया साल ग्रेगोरियन कैलेंडर के अनुसार 1 जनवरी को होता है। इतिहास से मिली जानकारी के अनुसार 1 जनवरी से नए साल की शुरुआत 15 अक्टूबर 1582 से हुई। इसके कैलेंडर का नाम ग्रिगोरियन कैलेंडर है।
खैर,अलग-अलग संस्कृतियों के अपने कैलेंडर और अपने नव वर्ष होते हैं,इसलिए दुनिया के देश अलग-अलग समय पर नया साल मनाते हैं। भारत में हिंदू नव वर्ष चैत्र मास की शुक्ल प्रतिपदा यानी गुड़ी पड़वा के रूप में मनाया जाता है तो दीपावली के अगले दिन से जैन नववर्ष शुरू होता है। ऐसे ही पंजाब में नया साल वैशाखी पर्व के रूप में तथा पारसी धर्म का नया वर्ष नवरोज उत्सव के रूप में 19 अगस्त को मनाया जाता है।
लोग इस जाती रात और आते दिन की खुशी को मना रहे हैं और मनाते रहेंगे,समझाने से नए साल के जश्न में कितने प्रतिशत कमी आई है,ये अलग बात है,पर सभी को इस रात को किए जाने वाले कई पापों से बचना चाहिए। आप किसी भी जाति-समाज से हों,पहले भारतीय नागरिक हैं,इतना ही याद रखिए,इसलिए इस रात को कोई अच्छा कार्य नहीं कर सकें तो पाप के भागीदार भी मत बनिए। इस रात को आप शराब,शबाब और अन्य नशों से दूर रहिए। किसी की पसंद और उससे जुड़े रहने की खातिर कई लोग अपना ईमान बेच देते हैं,जिससे बाद में पछतावा होता है, इसलिए जमीर को कभी बेचिए मत। नए साल की खुशी मनाईए,पर होटल,पब और मदिरालय से दूर रहिए। जवानी के जोश में नशे के इन अड्डों पर जाकर अपने कीमती दिमाग और शरीर को शराबी, चरसी,गंजेड़ी मत बनाइए। शुरू में अच्छी लगने वाली इन चीज़ों के चूल्हे में बहूमूल्य युवावस्था को मत जलाइए। आते-जाते साल की खुशी में किशोरवय से लेकर धनाढय अधेड़ तक लड़कियों की ईज़्जत से खेलते हैं,जो शुध्द रुप से पतन ही है। परिजनों को चाहिए कि,खुलेआम की जाने वाली ऐसी बेशर्मी से युवा भविष्य को सचेत करते हुए बचाएं। क़रीबन सभी धर्मों ने ऐसी गतिविधियों को महापाप करार दिया है,तब भी अफ़सोसजनक है कि आज सभी वर्ग इस रात को मनाते हैं। बेहतर विकल्प तो यह है कि,इस रात या नए दिन को यह होना चाहिए कि बच्चों-बुजुर्गों की सेवा और मदद की जाए। उनके साथ रुककर खुशियाँ बांटी जाए,ताकि उनकी उम्मीदों को और धड़कनें मिल जाए। ऐसा नहीं कर पाएं तो पसंद का दूसरा काम कीजिए। यकीन कीजिए कि,आपका दिल इससे बहुत अच्छा अनुभव लेकर ही उठेगा।
एक साल के समय से अपने रिश्तों पर भी ध्यान दीजिए। हालांकि,ये बंधन साल के मोहताज नहीं होते हैं,पर इनका लेखा-जोखा भी समझना ही चाहिए। जिन्होंने आपकी सालभर चिंता की है,आप भी उनकी फिक्र किजिए। हम कहाँ सही हैं और कहाँ नहीं,इसका हिसाब ऊपरवाला अपने हिसाब से और नीचे वाले भी हिसाब अपने हिसाब से ही लगाते हैं और लगाते रहेंगे,भले ही फिर हमारे सही-गलत होने को मात्र परमात्मा और अपनी अंतरआत्मा ही जानती है।
इस तरह हर साल का आख़िरी दिन जाकर हमारी जिंदगी का एक और साल जद्दोजहद में जुड़ जाता है। इस भाग-दौड़ भरी जिंदगी में हम खोते हैं-पाते हैं, और इसका विश्लेषण भी करते ही हैं, मेरा समझना है कि,हमें उस वक्त की फिक्र करनी चाहिए,जो हमने अपनों को या क़रीबी रिश्तों को दिया। जीवन में तरक्की और विकास कीजिए,पर रिश्तों की जमा पूँजी को क़तई मत भूलिए। इनकी चिंता और देखभाल अपने को ही करनी होगी। जिन्दगी की तकलीफों में से कुछ पल इनके लिए भी निकालें,ताकि रिश्तों में नींबू जैसी खटास नहीं आए। पुराने अनुभव और पक्के रिश्तों को साथ लेकर नए साल में नई सकारात्मकता के साथ नए संकल्प पूरे कीजिए। धर्म और आध्यात्म की राह पर चलकर मानव कल्याण और राष्ट्रप्रेम की भावना को सबमें भी जागृत कीजिए,तभी सब प्रबल बनेंगे। जाति-धर्म के खांचों से बाहर आकर समाज-देश की उन्नति में
तन-मन-धन से समर्पण दीजिए,तभी वर्षों की सार्थकता सिद्ध होंगी,सभी मित्रों -आदरणीययों को शुभकामनाएं।
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आपका शुभेच्छु 🙏
#अजय जैन 'विकल्प'
ajayjainvikalp@gmail.com
9770067300
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31 दिसम्बर को हर साल की अंतिम रात और नए वर्ष की शुरुआत माना जाता है, भले ही फिर यह अंग्रेजी कैलेण्डर से गलत हो या सही...नए साल का उत्सव लगभग 4000 साल से भी पहले बेबीलोन में 21 मार्च को मनाया जाता था,जो वसंत के आने की तिथि भी मानी जाती थी। प्राचीन रोम में भी नव वर्षोत्सव तभी मनाया जाता था। रोम के बादशाह जूलियस सीजर ने ईसा पूर्व 45 वें वर्ष में जब जूलियन कैलेंडर की स्थापना की,तब विश्व में पहली बार 1 जनवरी को नए साल का उत्सव मनाया गया। नया साल ग्रेगोरियन कैलेंडर के अनुसार 1 जनवरी को होता है। इतिहास से मिली जानकारी के अनुसार 1 जनवरी से नए साल की शुरुआत 15 अक्टूबर 1582 से हुई। इसके कैलेंडर का नाम ग्रिगोरियन कैलेंडर है।
खैर,अलग-अलग संस्कृतियों के अपने कैलेंडर और अपने नव वर्ष होते हैं,इसलिए दुनिया के देश अलग-अलग समय पर नया साल मनाते हैं। भारत में हिंदू नव वर्ष चैत्र मास की शुक्ल प्रतिपदा यानी गुड़ी पड़वा के रूप में मनाया जाता है तो दीपावली के अगले दिन से जैन नववर्ष शुरू होता है। ऐसे ही पंजाब में नया साल वैशाखी पर्व के रूप में तथा पारसी धर्म का नया वर्ष नवरोज उत्सव के रूप में 19 अगस्त को मनाया जाता है।
लोग इस जाती रात और आते दिन की खुशी को मना रहे हैं और मनाते रहेंगे,समझाने से नए साल के जश्न में कितने प्रतिशत कमी आई है,ये अलग बात है,पर सभी को इस रात को किए जाने वाले कई पापों से बचना चाहिए। आप किसी भी जाति-समाज से हों,पहले भारतीय नागरिक हैं,इतना ही याद रखिए,इसलिए इस रात को कोई अच्छा कार्य नहीं कर सकें तो पाप के भागीदार भी मत बनिए। इस रात को आप शराब,शबाब और अन्य नशों से दूर रहिए। किसी की पसंद और उससे जुड़े रहने की खातिर कई लोग अपना ईमान बेच देते हैं,जिससे बाद में पछतावा होता है, इसलिए जमीर को कभी बेचिए मत। नए साल की खुशी मनाईए,पर होटल,पब और मदिरालय से दूर रहिए। जवानी के जोश में नशे के इन अड्डों पर जाकर अपने कीमती दिमाग और शरीर को शराबी, चरसी,गंजेड़ी मत बनाइए। शुरू में अच्छी लगने वाली इन चीज़ों के चूल्हे में बहूमूल्य युवावस्था को मत जलाइए। आते-जाते साल की खुशी में किशोरवय से लेकर धनाढय अधेड़ तक लड़कियों की ईज़्जत से खेलते हैं,जो शुध्द रुप से पतन ही है। परिजनों को चाहिए कि,खुलेआम की जाने वाली ऐसी बेशर्मी से युवा भविष्य को सचेत करते हुए बचाएं। क़रीबन सभी धर्मों ने ऐसी गतिविधियों को महापाप करार दिया है,तब भी अफ़सोसजनक है कि आज सभी वर्ग इस रात को मनाते हैं। बेहतर विकल्प तो यह है कि,इस रात या नए दिन को यह होना चाहिए कि बच्चों-बुजुर्गों की सेवा और मदद की जाए। उनके साथ रुककर खुशियाँ बांटी जाए,ताकि उनकी उम्मीदों को और धड़कनें मिल जाए। ऐसा नहीं कर पाएं तो पसंद का दूसरा काम कीजिए। यकीन कीजिए कि,आपका दिल इससे बहुत अच्छा अनुभव लेकर ही उठेगा।
एक साल के समय से अपने रिश्तों पर भी ध्यान दीजिए। हालांकि,ये बंधन साल के मोहताज नहीं होते हैं,पर इनका लेखा-जोखा भी समझना ही चाहिए। जिन्होंने आपकी सालभर चिंता की है,आप भी उनकी फिक्र किजिए। हम कहाँ सही हैं और कहाँ नहीं,इसका हिसाब ऊपरवाला अपने हिसाब से और नीचे वाले भी हिसाब अपने हिसाब से ही लगाते हैं और लगाते रहेंगे,भले ही फिर हमारे सही-गलत होने को मात्र परमात्मा और अपनी अंतरआत्मा ही जानती है।
इस तरह हर साल का आख़िरी दिन जाकर हमारी जिंदगी का एक और साल जद्दोजहद में जुड़ जाता है। इस भाग-दौड़ भरी जिंदगी में हम खोते हैं-पाते हैं, और इसका विश्लेषण भी करते ही हैं, मेरा समझना है कि,हमें उस वक्त की फिक्र करनी चाहिए,जो हमने अपनों को या क़रीबी रिश्तों को दिया। जीवन में तरक्की और विकास कीजिए,पर रिश्तों की जमा पूँजी को क़तई मत भूलिए। इनकी चिंता और देखभाल अपने को ही करनी होगी। जिन्दगी की तकलीफों में से कुछ पल इनके लिए भी निकालें,ताकि रिश्तों में नींबू जैसी खटास नहीं आए। पुराने अनुभव और पक्के रिश्तों को साथ लेकर नए साल में नई सकारात्मकता के साथ नए संकल्प पूरे कीजिए। धर्म और आध्यात्म की राह पर चलकर मानव कल्याण और राष्ट्रप्रेम की भावना को सबमें भी जागृत कीजिए,तभी सब प्रबल बनेंगे। जाति-धर्म के खांचों से बाहर आकर समाज-देश की उन्नति में
तन-मन-धन से समर्पण दीजिए,तभी वर्षों की सार्थकता सिद्ध होंगी,सभी मित्रों -आदरणीययों को शुभकामनाएं।
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आपका शुभेच्छु 🙏
#अजय जैन 'विकल्प'
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